किसान भाई ब्रोकली से करे कमाई

   किसान भाई ब्रोकली से करे कमाई


         ब्रोकली अथवा हरी फूलगोभी एक गोभीवर्गीय सब्जी है। इसके उदव स्थान के सम्बन्ध में कोई भी मत स्थिर नही है. पर वैज्ञानिकों का मानना है कि फूलगोभी का जन्मस्थान इटली हो सकता हैभारत में फूलगोभी लाने का श्रेय 15वीं सदी के प्रारम्भ में वास्कोडिगामा नामक नाविक को है,कुछ फूलगोभी का जन्मस्थान साइप्रस को माना जाता हैं।


जलवायु व तापमान- फूलगोभी एक शीतोष्ण कटिबन्धीय पौधा है। ब्रोकली के पौधों के अच्छे अंकुरण के लिए औसतन 15200 सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है। ब्रोकली के बीज के अंकुरण तथा पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए तापमान लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। सामान्यतः ब्रोकली के पौधों के समुचित वृद्धि व विकास के लिए ठंडी और आर्द जलवायु उपयुक्त होती है। इसकी अच्छी बढवार छोटे दिन और लम्बी रातों में होती है। तापमान बढने पर फूल छितरेदार हो जाते हैं व पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं। इसलिए किसान भाई ब्रोकली की खेती करने से पहले यह सनिश्चित कर लें की तापमान अधिक न हो।


भूमि का चयन- ब्रोकली की खेती के लिए दोमट मिटटी उत्तम होती है,बलुई मिटटी में अगेती तथा दोमट मिटटी में पिछेती किस्मों को उगाना लाभकारी होगा,ब्रोकली की फसल अम्ल के प्रति सहनशील होती है। ब्रोकली की खेती के लिए 6.0-7.0 वाली भूमि सर्वोत्तम होती है। भूमि में पीएच अधिक होने पर बोरान की प्रचुरता कम हो जाती है। अधिक अम्लीय अथवा क्षारीय भूमि में फूलगोभी की खेती करने से बोरान तथा मोलिब्डेनम की मात्रा कम हो जाती है, जिसकी आपर्ति के लिए 0.3त्न बोरेक्स 10-15 किलोग्राम/हेक्टेयर व सोडियम मॉलिब्डेट का 1 से 1.5 किलोग्राम/हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए। हल्की संरचना वाली मृदा में पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद डालकर ब्रोकली की खेती से किसान भाई लाभ ले सकते हैं।


के टीएस 9- इस किस्म का विकासभारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कटराई द्वारा किया गया है। इस किस्म के पौधे माध्यम ऊंचाई के होते है जिसका तना छोटा व शीर्ष सख्त होता है इसकी पत्तियों का रंग गहरा हरा होता है।


ब्रोकली 1- भारतीय कृषि अनुसन्धान नई दिल्ली द्वारा विकसित की गयी अभी हाल की किस्म है। ब्रोकली की खेती से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए इस किस्म को बोने की सिफारिश की गयी है।


बीज की मात्रा- ब्रोकली को नर्सरी में उगाकर खेत में रोपाई की जाती है। इसके पौधे बहुत छोटे-छोटे होते हैं। ब्रोकली की एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई हेतु 375 से 400 ग्राम बीजकी मात्रा से तैयार पौध पर्याप्त होती है।


नर्सरी के लिए क्यारी तैयार करना - ब्रोकली की पौध तैयार करने के लिए सर्वप्रथम अच्छी भूमि का चुनाव करना चाहिए। ब्रोकली की पौध के लिए पर्याप्त जल निकास वाली उपजाऊ दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में ब्रोकली की खेती करना चाहते हैं तो 100 वर्ग मीटर में तैयार की गयी पौध पर्याप्त होगी। 


     


 सबसे पहले भूमि को पाटा चलाकर समतल लें। इसके बाद 5 मीटर लम्बी 1 मीटर चौड़ी क्यारियां बना लें। ध्यान रहें क्यारियां जमीन से करीब 15 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिए। पौध में सिंचाई अथवा बारिश का अनावश्यक पानी न रुके। इसके लिए 30 सेंटीमीटर चौडी नालियाँ बना लें। ब्रोकली की पौध की 8 सेंटीमीटर ऊपरी सतह पर कार्बनिक खाद जैसे गोबर की खाद,सडी-गली पत्तियों से तैयार खाद कम्पोस्ट मिलाना चाहिये। खाद मिलाने के बाद पाटा चलाकर क्यारी को समतल कर लें।


           किसान भाई उपचारित बीज को क्यारियों में 15 सेंटीमीटर की दूरी तथा एक सेंटीमीटर के अंतर पर तथा करीब 1.50 सेंटीमीटर की गहराई में बवाई करें। बीजों की बुवाई के पश्चात मिटटी के मिश्रण और सडी-गली गोबर की खाद का 1:1 के अनुपात में मिश्रण बनाकर क्यारियों को ढक दें, बीजों के सही जमाव हेतु उचित तापमान व नमी अति आवश्यक होती है। इसके लिए क्यारियों को पआल अथवा गन्ने की सखी पत्तियों व सखी घास से ढक दें। किसान भाई क्यारियों में हजारे की सहायता से पानी दें। जैसे बीजों का अंकुरण अच्छी तरह हो जाये तो घास की परत हटा दें। अगर ऐसा लगे की ब्रोकली की पौध में पत्तियां पीली व पौधे लग रहे हों। तो 5 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर क्यारियों में छिडकाव करें।


          पौध को कीटों से बचाव हेतु 0.2 प्रतिशत कीटनाशक का घोल बनाकर हजारे से छिडकाव करें। पौध को वर्षा व धूप से बचाने के लिए क्यारियों के ऊपर पोलीथीन की चादर अथवा घास या फिर छप्पर से ढक देना चाहिए। ब्रोकली के पौधे रोपाई हेतु 30 से 45 दिन में तैयार हो जाते हैं। पौध को रोगों तथा कीटों के बचाने के एकीकृत जीवनाशी व एकीकृत कीटनाशी प्रबन्धन का प्रयोग करें।


पौध की रोपाई- किसान भाई ब्रोकली की रोपाई हेतु खेत की तैयारी कर लें,पौध की रोपाई शाम के समय ही करें,रोपाई करते समय रोगी व कमजोर पौधों को निकाल कर फेंक दें तथा फूलगोभी के पौधों की रोपाई के पश्चात सिंचाई अवश्य कर दें।


          खाद तथा उर्वरकों की मात्रा- ब्रोकली की रोपाई से पहले खेत तैयार करते समय 200-300 कुंतल/हेक्टेयर की दर गोबर की खाद को भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए,खेत में सदैव मृदा परीक्षण के पश्चात् ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए, किन्ही कारणों से यदि मृदा परीक्षण न हो पाए तो- नाइट्रोजन 80-100 किलोग्राम/हेक्टेयर, फॉस्फोरस 5060 किलोग्राम/हेक्टेयर, पोटॉस 60-70 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।


        किसान भाई उक्त खाद व उर्वरक की मात्रा में से क्रमशः नाइटोजन की आधी मात्रा व गोबर की खाद,जैविक खाद वर्मी कम्पोस्ट,फॉस्फोरस और पोटॉस की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें। शेष नाइट्रोजन की मात्रा को तीन बराबर भागों में बाँट लें। इसकी पहली मात्रा ब्रोकली के रोपाई के 25 -30 दिन बाद.45 दिन बद व अंतिम नाइट्रोजन की मात्रा 60 दिन बाद टॉप डेसिंग के रूप में देना चाहिए बोरोन की कमी होने पर 0.3 प्रतिशत का छिडकाव करना चाहिए।


        सिंचाई- रोपाई के तुरंत बाद ही प्रथम सिचाई करना चाहिये. रोपाई के 4-5 दिन बाद दसरी सिंचाई करना चाहिए.अगेती फसल में 7 दिन तथा पिछेती फूलगोभी में 10-15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करना अच्छा होता है,स्मरण रहे फूलगोभी के खेत में पानी इकट्ठा न होने पाये,अन्यथा पौधे पीले पड़कर मर जायेंगे,उचित जल निकासी द्वारा अनावश्यक पानी को निकाल दें।


        खरपतवार नियंत्रण- ब्रोकली की खेती में रोपाई के कुछ दिन बाद ही खरपतवार उग आते हैं,ये खतपतवार अधिकतर एक वर्षीय आयकाल वाले होते हैं जिसमें- बथुवा,प्याजी,जंगली गाजर,हिरनखुरी,चटरी- मटरी,आदि मुख्य है। । इन्हें खरपी से निराई कर अथवा हैण्ड हो की मदद से निकाल देना चाहिए, आमतौर पर 2 से 3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। ब्रोकली की जड़ें उथली रहती रहती हैं इसलिए निराई करते समय उन पर मिटटी चढ़ाते रहना चाहिए। जिससे जड़ें जमीन में मजबूती से टिकी रहें 


          ब्रोकली की फसल पर अधिक खरपतवार होने पर टोक ई-25 की 5लीटर/प्रति हेक्टेयर की दर 625 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें,दवा से असर से लगभग 45 दिन तक खरपतवार नही उगते,इसके बाद उगे खरपतवारों को निराई कर फसल से हटा देना चाहिए।


          ब्लान्चिंग- फूल गोभी की तरह ब्रोकली के फूलों को सूर्य की तेज रौशनी से बचाने के लिए फूलगोभी के पत्तियों को तोड़कर ढकने की प्रक्रिया ब्लान्चिंग कहलाती है। (पांच दिन से अधिक फूलगोभी के फूल के ढककर नही रखना चाहिए,अन्यथा वह पीले पड़ जायेंगे)


लक्षण व कारण - यह नर्सरी में लगने वाला फंफूद जनित रोग है। जड़ तथा तने सड़ने लगते हैं। पौधे गिरकर मर जाते हैं।


          उपचार- बीजों को केप्टान/थायराम की 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए। अथवा ब्रेसिकाल की 0.2 प्रतिशत मात्रा से बुवाई से पूर्व नर्सरी की सिंचाई कर देनी चाहिए


लक्षण व कारण- यह जीवाणुजनित रोग पत्तियों के किनारों पर ङ्क आकार में दिखता है। धीरे-धीरे शिरायें काली व भूरी हो जाती हैं। अंततः पत्तियाँ मुरझाकर पीली पड़कर गिर जाती है।


          उपचार- रोगी पौधों को उखाड़कर जला दें. साथ ही इंडोफिल रू-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 पानी में घोलकर छिडकाव करें।


लालामीरोग लक्षण व कारण- ब्रोकली की खेती में बोरान की कमी से होने वाला रोग हैं। फूल का रंग कत्थई हो जाता है फूलों के बीच-बीच में डंठल व पत्तियों पर काले काले धब्बे बन जाते हैं। धीरे-धीरे पौधे अविकसित हो जाते हैं और डंठल खोखले हो जाते हैं।


        उपचार- इस रोग से बचाव के लिए 0.3त्न बोरेक्स के घोल का छिडकाव करें।


 लालामीरोग लक्षण व कारण- ब्रोकली की खेती में बोरान की कमी से होने वाला रोग हैं। फूल का रंग कत्थई हो जाता है फूलों के बीच-बीच में डंठल व पत्तियों पर काले काले धब्बे बन जाते हैं। धीरे-धीरे पौधे अविकसित हो जाते हैं और डंठल खोखले हो जाते हैं।


          उपचार- इस रोग से बचाव के लिए 0.3त्न बोरेक्स के घोल का छिडकाव करें।


काली मेखला, लक्षण व कारण- यह फफद जनित रोग है,इसका प्रभाव नर्सरी में ही बुवाई के 15-20 दिनों में दिखाई देने लगता है पत्तियों पर धब्बे,तथा बीच का भाग राख जैसा धूसर हो जाता है। फूलों के बड़े होने पर रोगी पौधे गिर जाते हैं


        उपचार- फसल चक्र नेब तीन साल के लिए बदलाव कर सरसों कुल के पौधों को मही बोना चाहिए। साथ ही बीजों को बुवाई से पहले 500ष्ट पर आधे घंटे तक गर्म पानी में उपचारित करना चाहिए।


 


काला तार, लक्षण व कारण- यह फंफूद जनित रोग है,तना तारकोल का काला पड़ जाता है,


      उपचार व बचाव- पौधों के रोपने के 10 से 15 दिन के अंतर पर ब्रेसिकाल 0.2 प्रतिशत मात्रा को घोल बनाकर छिड़काव कर बचाव कर सकते हैं। ब्रोकली की खेती में काला तार का नियंत्रण बीज उपचार व पौध उपचार करके कर सकते हैं।


माहू- आकाश में बादल छाने व मौसम नम होने पर माहू के छोटे-छोटे पौधों का प्रकोप बढ़ जाता है ये फसल को कमजोर कर देते हैं।


पत्तियों में जाला बुनने वाला कीट- ब्रोकली की खेती के लिए यह काफ़ी हानिकारक कीट है। एक प्रकार की हरे रंग की सुंडी होती है जो पत्तियों में जाला बुनकर हानि पहुचाती है,


गोभी की तितली- इस तितली को सूंडी पौधे की पत्तियों,कोपलों व पौधे के ऊपरी भाग को खाती है


उपचार व रोकथाम- उक्त तीनों के कीटों के रोकथाम हेतु नुवान 0.05 प्रतिशत (0.5 मिलीलीटर/लीटर पानी) का घोल बनाकर छिडकाव करें।


फ्ली बीटल- इस कीट का प्रकोप पौधे पाध छोटी अवस्था में होता है। मुलायम पत्तियों पर छेडबनाकर ये कीट उसे खत्म कर देते हैं। आरामक्खी: 20 सेंटीमीटर शरीर पर पांच धारियों वाली इस कीट की संडी फलगोभी के मलायम पत्तियों को फसल को नकसान पहचाती हैं।


डायमंड बैक मोथ- इसका प्रकोप फसल पर अगस्त-सितम्बर के महीने में होता है,इसकी सुंडी पौधे की पत्तियों को खाती हैं, छेद बनाकर पत्तियां खाने से पत्तियों में सिर्फ नसें की बचती हैं।


बंदगोभी की संडी- इस संडी का प्रकोप पत्तियों पर होता है.छोटे-छोटे बच्चे पकोप पत्तियों पर होता है छोटे-छोटे बच्चेपतियों से भोजन प्राप्त कर बडे होने पर परी पत्ती को ही खा जाते हैं


उपचार व रोकथाम- उक्त कीटों से बनाव देत बचाव हेतु सेविन 10 प्रतिशत धूल का 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बरकाव करना चाहिए।


ब्रोकली की कटाई- जब फूलों का आकार बड़ा सुडौल,व ठोस व हरे रंग का हो जाये तब ब्रोकली की कटाई करना चाहिए। पौध रोपाई के 60 से 65 दिन बाद फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बन कर तैयार हो जाए तो उसे तेज चाकू या दरांती से ध्यानपूर्वक काटना चाहिए। ध्यान रखें कि कटाई के समय गुच्छा खूब गुंथा हुआ व कसा हो। और उस में कोई कली खिलने न पाए।