सूरजमुखी

    सभी मौसम में पकने वाली प्रमुख फसल है सूरजमुखी


सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी, एवं जायद तीनो ही मौसम में की जा सकती है, लेकिन खरीफ में इस पर अनेक रोगों एवं कीटो का प्रकोप होने के कारण फूल छोटे होते है, तथा दाना कम पड़ता है। जायद में सूरजमुखी की अच्छी उपज प्राप्त होती है। इस कारण जायद में ही इसकी खेतीज्यादातर की जाती है।


जलवायु और भूमि- सूरजमुखी की खेती खरीफ रबी जायद तीनो मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की अति आवश्यकता पड़ती है। सूरजमुखी की खेती अम्लीय एवम क्षारीय भूमि को छोड़कर सिंचित दशा वाली सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है।


खेत की तैयारी- खेत की तयारी में जायद के मौसम में प्राप्त नमी न होने पर खेत को पलेवा करके जुताई करनी चाहिए। एक जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए मिटटी भुरभुरी कर लेना चाहिए, जिससे की नमी सुरक्षित बनी रह सके


बुवाई का समय- जायद में सूरजमुखी की बुवाई का सर्वोत्तम समय फरवरी का दूसरा पखवारा है इस समय बुवाई करने पर मई के अंत पर जून के प्रथम सप्ताह तक फसल पक कर तैयार हो जाती है, यदि देर से बुवाई की जाती है तो पकाने पर बरसात शुरू हो जाती है और दानो का नुकसान हो जाता है, बुवाई लाइनों में हल के पीछे 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटी मीटर तथा पौध से पौध की दूरी 15 से 20सेंटीमीटर रखनी चाहिए।


बीज की मात्रा-बीज की मात्रा अलग अलग पड़ती है, जैसे की संकुल या सामान्य प्रजातियो में 12 से 15 किलो ग्राम प्रति हैक्टर बीज लगता है और संकर प्रजातियो में 5 से 6 किलो ग्राम प्रति हैक्टर बीज लगता है। यदि बीज की जमाव गुणवता 70त्न से कम हो तो बीज की मात्रा बढाकर बुवाई करना चाहिए, बीज को बुवाई से पहले 2 से 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलो ग्राम बीज को शोधित करना चाहिए। बीज को बुवाई से पहले रात में 12 घंटा भिगोकर सुबह 3 से 4 घंटा छाया में सुखाकर सायं 3 बजे के बाद बुवाई करनी चाहिए जायद के मौसम में।


उर्वरक का प्रयोग- सामान्य उर्वरकों का प्रयोग मृदा परिक्षण के आधार पर ही करनी चाहिए फिर भी नत्रजन 80 किलोग्राम, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवम पोटाश 40 किलो ग्राम तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। नत्रजन की आधी मात्रा एवम फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कुडों में प्रयोग करना चाहिए इसका विशेष ध्यान देना चाहिए शेष नत्रजन की मात्रा बुवाई के 25 या 30 दिन बाद ट्राईफोसीड के रूप में देना चाहिए यदि आलू के बाद फसल ली जाती है तो 20 से 25त्न उर्वरक की मात्र कम की जा सकती है, आखिरी जुताई में खेत तैयार करते समय 250 से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद लाभदायक पाया गया है।


   


सिंचाई का समय- पहली सिचाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद हल्की या स्प्रिकलर से करनी चाहिए। बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिचाई करते रहना चाहिए। कुल 5 या 6 सिचाइयो की आवश्यकता पड़ती है। फूल निकलते समय दाना भरते समय बहुत हल्की सिचाई की आवश्यकता पड़ती है। जिससे पौधे जमीन में गिरने न पाए क्योकि जब दाना पड जाता है तो सूरजमुखी के फूल के द्वारा बहुत ही पौधे पर वजन आ जाता है जिससे की गिर सकता है गहरी सिचाई करने से।


निराइ एवं गुड़ाई- बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पहली सिचाई के बाद ओट आने के बाद निराई गुड़ाई करना अति आवश्यक है, इससे खरपतवार भी नियंत्रित होते है। रसायनो दारा खरपतवार नियत्रण हेतु पेंडामेथालिन 30 ई सी की 3.3 लीटर मात्रा 600 से 800 लीटर पानी घोलकर प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के 2-3 दिन के अन्दर छिडकाव करने से खरपतवारो का जमाव नहीं होता है।


परिषेचन की क्रिया- सूरजमुखी एक परिषेचित फसल है इसमे परिषेचन क्रिया अति आवश्यक है यदि परिषेचन क्रिया नहीं हो पाती तो पैदावार बीज न बन्ने के कारण कम हो जाती है इसलिए परिषेचन क्रिया स्वतः भवरो. मधुमक्खियो तथा हवा आदि के द्वारा होती रहती है फिर ही अच्छी पैदावार हेत अच्छी तरह फूलो, फुल आने के बाद हाथ में दस्ताने पहनकर या रोयेदार कपडा लेकर फसल के मन्दको अर्थात फलो पर चारो र धीरे से घुमा देने से परिक्षेचन की क्रिया हो जाती यह क्रिया प्रात:7 से 8 बजे के बीच में कर देनी चाहिए।


 फसल सुरक्षा- सूरजमुखी में कई प्रकार के कीट लगते है जैसे की दीमक हरे फुदके डसकी बग आदि है। इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनो का भी प्रयोग किया जा सकता है। मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ई सी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।


कटाई और मड़ाई- जब सूरजमुखी के बीज कड़े हो जाए तो मुन्डको की कटाई करके या फूलो के कटाई करके एकत्र कर लेना चाहिए तथा इनको छाया में सुख लेना चाहिए इनको ढेर बनाकर नहीं रखना चाहिए इसके बाद डंडे से पिटाई करके बीज निकल लेना चाहिए साथ ही सूरजमुखी थ्रेशर का प्रयोग करना उपयुक्त होता है।


भण्डारण- बीज निकलने के बाद अच्छी तरह सुख लेना चाहिए बीज में 8 से 10न नमी से आधिक नहीं रहनी चाहिएबीजो से 3 महीने के अन्दर तेल निकल लेना चाहिए अन्यथा तेल में कड़वाहट आ जाती है, अर्थात पारिस्थिकी के अंतर्गत भंडारण किया जा सकता है।


                      दोनों तरह की प्रजातियों की पैदावार अलग- अलग होती है। संकुल या सामान्य प्रजातियों की पैदावार 12 से 15 कुन्तल प्रति हैक्टर होती है तथा संकर प्रजातियों की पैदावार 20 से 25 कुन्तल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है।