कैसे करें काली मिर्च की खेती?
खेती योग्य जलवायु एवं मिट्टी- काली मिर्च की खेती पर्याप्त वर्षा तथा आर्द्रता वाले आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है ।पश्चिम घाट के उपपर्वतीय क्षेत्र , गरम और आर्द्र जलवायु इसकी खेती के लिए उत्तम है।इसकी खेती 20 डिग्री उत्तर और दक्षिण अक्षांश के दरमियान समुद्र तट से 1500 मीटर तक की ऊंचाई पर सफलतापूर्वक की जा सकती है। काली मिर्च के पौधों की वृद्धि के लिए 125-200 से.मी. वार्षिक वर्षा आदर्श मानी जाती है। काली मिर्च की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। परन्तु लाल लैटराइट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। जबकि मृदा का पी.एच.मान 5.5 से 6.5 के बीच अनुकूल होता है । भारत में काली मिर्च की खेती करने वाले पश्चिम तटीय क्षेत्र जैसे,समुद्र तट के समीप भूमि, रोपण फसल के अनुपात में काली मिर्च को व्यापक स्तर पर उगाया जाता है, समुद्र तट से लगभग 800-1500 मीटर उचाई वाले पहाड़ी क्षेत्र, काफी, इलायची तथा चाय की फसल के साथ इसकी खेती अतफसल के रूप में करते हैं ।
प्रजातियाँ एवं कल्टीवर्स- काली मिर्च के अधिकतर कल्टीवर्स द्विलिंगी (मादा तथा नर पुष्प एक ही डाली में) होते हैं जबकि नर तथा मादा पौधों के बीच में पूर्णत-भिन्ता पायी जाती है।भारत में काली मिर्च के 75 से अधिक कल्टीवरों की खेती की जा रही है ।केरल में सभी कल्टीवरों में करिमुन्डा सबसे अधिक लोकप्रिय है।कोट्टनाडन(दक्षिण केरल), नरायकोडी (मध्यके रल), ऐपिरियन (वयनाडु), नीलमुंडी (इडूक्की), कुतिरवल्ली तथा बालनकोट्टा कल्टीवरों से एकांतर वर्ष में उपज प्राप्त होती है। गुणवत्ता की दृष्टि से कुट्टनाडन में ओलिओरसिन (17.8 प्रतिशत) की अधिक मात्रा तत्पश्चात एम्पियरियन में (15.7 प्रतिशत) होती है । काली मिर्च की सतह उन्नत प्रजातियाँ खेती के लिए विमोचन की गई है। जिनका वर्णन तालिका -1 में किया गया है।
प्रवर्द्धन- काली मिर्च के पौधों को तीन प्रकार से विकसित किया जा सकता है।(1) लम्बे इंटर नोड युक्त तना जिसमें अपस्थानिक जड़े होती है जो सहायक वृक्षों से चिपकी रह सकती है।(2) भुस्तरीय प्ररोह जो बेल के निचले भाग से उदभव होकर जमीन के सहारे फैली रहती है ।इनमें जड़ों युक्त लंबे इन्टर नोड होते हैं।(3) फल युक्त पाश्व शाखाएं रोपण के लिए रोपण सामग्री मुख्यत: आरोही प्ररोह से तैयार की जाती है जबकि इसके उत्पादन में सीमान्त प्ररोह का भी उपयोग करते है। बुश काली मिर्च को विकसित करने के लिए पाश्व शाखाओं का उपयोग किया जाता है ।काली मिर्च की वेरी में भी अंकुरण क्षमता होती है।परन्तु आम तौर पर इसका उपयोग रोपण के लिए नहीं करते क्योंकि यह अनुवांशिक रूप से एक समान नहीं होती।
रोपण सामगि यो का उत्पादनपरम्परागत विधि- उच्च उपज वाली स्वस्थ पौधे के प्ररोह के निचले भाग को मिट्टी में दबाकर लकड़ी के शेयर रखतें हैं तथा जड़ निकलने तक छोड़ देते हैं ।फरवरी तथा मार्च के महीने में इसकी 2-3 नोडों को काटकर अलग करके प्रत्येक को नर्सरी वेड़ों या पोटिंग मिश्रण (मृदा,बालू तथा खाद को 1:1:1 के अनुपात) युक्त पोलीथीन बैगों में रोपण करते हैं रोपित पौधों को पर्याप्त छाया में रखकर नियमित सिंचाई करना चाहिए मई-जून माह में पौधे खेतों में रोपण करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
संशोधन प्रवर्धन विधि- श्रीलंका में काली मिर्च की रोपण सामग्रियों को उत्पादन करने के लिए एक उत्तम विधि को विकसित किया गया ।इस विधि द्वारा जल्दी और आसानी से काली मिर्च की रोपण सामग्रियों का उत्पादन किया जा सकता है।भारत में कुछ संशोधन के साथ इस प्रवर्धन विधि को अपनाया गयाइस विधि में 45 से.मी.गहराई तथा 30 से.मी.चौड़े एवं सविधानसार लम्बे गढ्डे बनाये जाते हैं इन __गढ्डों में मृदा,रेत तथा खाद को अनुपात से भर देते हैं ।बांस को दो भागों में विभाजित करके इसके आधे हिस्से (जिसकी लम्बाई लगभग 1.25-1.50 मीटर तथा 810 से.मी.व्यास ) को 30 से. मीटर के अन्तराल पर 450 कोण पर रखते हैं ।बांस के ऊपरी हिस्से को किसी मजबूत वस्तु के सहारे रखकर उसके खोखले भाग में रूटिंग मीडियम भरकर प्रत्येक विकसित नोड को रूटिंग मीडियम में नारियल की पत्ती की मध्य शिरा की सहायता से दबाते हैंजब बेल ऊपर की तरफ बढ़ने लगे तब पौधों की ऊपर वाली तीन नोडों को काट कर सौरिकृत पोटिंग मिश्रण युक्त पोलीथीन बैगों में रोपण करते हैं रोपण के समय ट्राईकोडरमा को 1ग्राम तथा वीएएम 100 सीसी/ कि.ग्राम को प्रति बैग दर से डालते हैं ।पौलिथिन बैगों को ठंडे तथा आर्द्रता वाले स्थान पर खेतों में रोपण होने तक रखते हैं इस विधि द्वारा पौधों का तीव्र गति से विकास (14),अच्छी तरह विकसित जडें, खेतों में पौधों की अच्छी विकसित जडें, खेतों में पौधों की अच्छी तरह स्थापना तथा पौधे की तेजी की से वृद्धि होती है।
टेंच विधि- खेत में उगाये गये काली मिर्च के पौधे के आरोही प्ररोहों की एक नोड से काली मिर्च की रोपण सामग्री तैयार करने के लिए एक सरल, सस्ती और उत्तम विधि को इस संस्थान द्वारा विकसित किया गया है। ठंडे और छायादार स्थान में 2.0 मी.x 1.0 मी.x 0.5 मी. आकार का गढ्डा खोद लेते हैं। खेत में उगाये गए पौधे को पत्तों सहित 8-10 से.मी. लम्बे एक नोड को रेत, मिट्टी नारियल जटा और गोबर की खाद को समान अनुपात में पोलिथिन बैग (200 गेज का 25 से.मी.x15 से.मी. आकार ) में रोपण करते हैं नोड को इस तरह रोपण करते हैं कि उसकी पत्तियों को मिश्रण के ऊपर रहना चाहिए इन बैंगो को गढ़डों में रखने के बाद गढ़डों को एक पौलिथिन शीट से ढक दिते हैं इन पोलिथिन शीटों के कोने पर वजन रखकर उसको दबाते हैं ताकि वह हवा में स्थिर रहे ।पौध युक्त बैगो में दिन में चार-पाच बार सिंचाई करना चाहिए तथा गढ़डों को सिंचाई के तरंत बाद पौलिथिन शीट से पुन- ढक देना चाहिए ।पौधे युक्त पोलीथीन बैगों में कॉपर ओक्सिक्लोराइड (2 ग्राम /लीटर ) को 2-3 बार डालना चाहिए
लगभग एक महीने बाद पौधों में नये प्ररोह निकलने शुरू हो जाते है।रोपण के 2 महीने बाद पौधों को गढ़डों से बहर निकाल कर छायादार जगहों में रखकर दिन में दो बार सिंचाई करना चाहिए यह पौधे भागभग 2 से 2 १ महीने बाद खेतों में रोपण करने के लिए तैयार हो जाते हैं ।इस विधि द्वारा उत्पादित रोपण सामग्रियों में 80-85त्न पौधे खेतों में सफलतापूर्वक स्थापित होते हैं।
सर्पेन्टाइन विधि- काली मिर्च की रोपण सामग्रियों के उत्पादन के लिए यह विधि सबसे सस्ती एवं प्रभावशाली विधि है।पौधशाला में 500 ग्राम सौरिकृत पोंटिंग मिश्रण को पौलिथिन बैग में भर कर उसमें मूल युक्त पौधों को मातृ पौधे की हैसियत से रोपण करते हैं ।इन पौधे के बढ़ने के साथ-साथ उसमें कुछ नोड निकल आती हैं ।इन नोडों को अन्य पोंडिंग मिश्रण युक्त पौलिथिन बैग (20 x 10 से.मी. आकार) में नारियल पत्तों की मध्य शिरा की सहायता से दबा कर रखें तथा यह सुनिश्चित कर लें कि नोड अच्छी तरह पोंडिंग मिश्रण में दबी है। इसी तरह इस प्रक्रिया को आगे जारी रखते हैं ।तीन महीने बाद रोपित किये मातृ पौधे से प्रथम 10 से 12 नोड वाले पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।इन नोडों को काटकर अलग करके उन्हें पौलिथिन बैगों में रोपण करते हैं। रोग रहित रोपण सामग्री के उत्पादन के लिए पौलिथिन बैग में जैवनियंत्रण कारक तथा सौरी कत पोटिंग मिश्रण अर्थात मदा, ग्रेनाइट पाउडर और खाद को 2-1-1 के अनुपात में भरते हैं ।इन पौधों में एक सप्ताह के अन्दर नयी पत्तियां निकलना शुरु हो जाती हैं ।ये पौधे लगभग 2-3 माह बाद खेतों में रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं ।इन पौधों में रोजाना सिंचाई करना चाहिए ।इस विधि द्वारा प्रतिवर्ष प्रत्येक मातृ पौधे से लगभग 60 पौधे प्राप्त किये जा सकते हैं।
मृदा रहित पोंटिग मिश्रण- नारियल जटा. केचआ खाद (75:25 के अनुपात) तथा ट्राइकोडरमा आधारित टालक पाउडर (107 सीएफयू प्रति किलो ग्राम 1)10 ग्राम प्रति किलो ग्राम की दर से मिला कर मृदा रहित पोडिंग मिश्रण बनाते हैं। इस मिश्रण को प्लग ट्रे में भरकर पौधों का रोपण करते हैं ।परंपरागत प्रवर्धन विधि की अपेक्षा पलग ट्रे द्वारा उत्पादित रोपण सामग्री उत्तम होती है।
प्लग ट्रे प्रर्वधन विधि एक तरह संशोधन सरपेन्टाइन विधि है ।नारियल जटा तथा केचुआ खाद (75:25 के अनुपात ) की सहायता से सुविधानुसार लम्बी,1.5 मीटर चौरी तथा 10 से.मी ऊँची बेड बनाते हैं इनमें पौधे की वृद्धि होने देते हैं तथा प्रत्येक नोड को रुटेड मीडियम में दबाते हैं लगभग 4560 दिनों पश्चात 15-20 नोड को काट कर अलग-अलग मदा रहित पोटिंग मिश्रण यक्ता प्लग ट्रे (7.5x7.5 x 10 से.मी. के आकर ) के अलग अलग खानों में रोपन करते हैं इन प्लग ट्रे को आर्द्रता अनियन्त्रित ग्रीन हॉउस (27+-20 डिग्री) में रखते हैं। 4560 दिनों बाद जब पौधों में 4-5 पत्तियां निकल आएं तब इन पौधों को मजबूती प्रदान करने के लिए प्राकृतिक हवादार ग्रीन हॉउस _ में स्थानान्तरण करते हैं। 120-150 दिनों के बाद स्वस्थ काली मिर्च के पौधे खेतो में रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।